Sunday, June 12, 2011

पत्थरों से टकराने नुकीले पत्थरों की ज़रूरत

                        
             देहरादून के हिमालयन अस्पताल में दाखिल कराने के बावजूद  बाबा रामदेव का आमरण अनशन आज नवमें दिन भी जारी है. काले धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने ,विदेशी बैंकों में जमा भारतीयों के काले धन को वापस लाने, उनका नाम उजागर करने ,देश के बच्चों को स्वदेशी भाषा में शिक्षा दिलाने जैसी उनकी मांगों पर भला किसी को क्यों कोई ऐतराज होना चाहिए  ?
   ये सभी मांगें राष्ट्र-हित और जन-हित से सम्बन्धित हैं.इसलिए आम-जनता को तो इन पर कोई आपत्ति नहीं है,लेकिन जिन लोगों के हाथों में  इन मांगों को पूरा करने की ताकत है, वे ज़रूर ' किन्तु-परन्तु' करते हुए इन्हें नज़रअंदाज़ कर रहे हैं ,क्योंकि अगर ये मांगें पूरी कर दी गयी ,तो उन्हें जनता के सामने बेनकाब होना पड़ेगा  .फिर जनता  उनका क्या हाल करेगी ,यह सोच कर ही उनकी रूह काँप रही होगी . शायद इसीलिए वे योग-गुरु रामदेव के आमरण-अनशन और उनकी हालत चिंताजनक होने के बावजूद बेशर्मों और बेरहमों की तरह  चुप्पी साधे हुए हैं. राष्ट्रीय स्तर के एक अर्ध-विक्षिप्त व्यक्ति  द्वारा अपने पागलपन का नमूना पेश करते हुए आज भी यह कहा गया कि अनशनरत बाबा को मनाने कोई नहीं नहीं जाएगा ,जबकि पूरी  दुनिया देख रही है कि बाबा के गिरते सेहत की फ़िक्र करने वालों ने ही उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया है  और बाबा से मिलने प्रसिद्ध संत श्रीश्री रविशंकर महाराज कल ११ जून से वहाँ मौजूद हैं .आज एक और लोकप्रिय संत मोरारी बापू के देहरादून जाने की खबर है. देश भर से कई राष्ट्रीय नेता और लाखों लोग उनसे आमरण-अनशन तोड़ने की अपील कर रहे हैं .निश्चित रूप से राष्ट्र-हित के मुद्दों को लेकर बाबा के सत्याग्रह से देश में भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ जन-जागरण की एक नयी लहर पैदा हुई है, जो आगे चल कर धन-पशुओं के खिलाफ एक भयानक सुनामी में बदल सकती है.इस संभावित जन- सुनामी का नेतृत्व भी बाबा और उनके सहयोगियों को करना होगा .
        इसलिए मेरा दिल भी यह कहता है कि बाबा को अब अपना आमरण अनशन तोड़ देना चाहिए .जिन लोगों से अपनी सार्वजनिक मांगों को मनवाने के लिए वे अनशन कर रहे हैं ,ऐसे तमाम लोग बेहद पत्थर दिल हैवान हैं. बाबा को इन हैवानों से इंसानियत की उम्मीद नहीं करनी  चाहिए .इन पत्थर-दिल पत्थरों से टकराने के लिए अपने हाथों में नुकीले पत्थर लेकर आगे आना होगा .अगर आप आमरण अनशन पर यूं ही बैठे रहे , तो यह कैसे हो पाएगा ? देश के लिए और देशवासियों के लिए आपका जीवन बहुत कीमती है . इसे व्यर्थ न जाने दें .
                                                                                                            -  स्वराज्य करुण

8 comments:

  1. ये अनशन भ्रष्ताचार के खिलाफ होता तो जरूर सफल होता बाबा खुद तो बिना तैक्स की दौलत इकट्ठी कर इतना बडा साम्राज्य्6 खडा करने मे लगे हैं और दूसरों पर ऊँगली उठा रहे हैं ऐसे आन्दोलन मे उस व्यक्ति का साथ दिया जाता है जो खुद पाक साफ हो कम से कम मुद्दे पर जिसके लिये वो लड रहा है एक नेपाली बाहर से आ कर 10--12 साल मे इतनी दौलत कमा ले बात हज़्म नही होती। और बाबा का बार बार अपने ब्यानों से पलटना खुद को संविधान से भी ऊपर मानना, लोगों को पिटते हुये छोड कर भाग जाना ये नेतृ्त्व करने वाले को शोभा नही देता ये तथागित सन्यासी के गुभ्न नही बस देश को सामप्रदायिक आग मे झोंक रहे हैं\ जिस मर्जी पार्टी की सरकार आये भ्रष्टाचार समाप्त नही होगा जब तक हम अपने अपने घर से उसकी शुरूआत नही करते।ये सब्ज बाग दिख्गा कर देश मे अस्थिरता फैलाने और कुर्सियाँ हासिल करने का खेल है। धन्यवाद।

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  2. मुझे लगता है कि बाबा के विरोध में मीडिया ने भ्रामक बातें फैलाई हैं ..जो भी हो बाबा जो मांग कर रहे हैं उससे उनका तो कोई भला नहीं होने वाला ... बात बस यही है कि गुहार उनसे कि जा रही है जिनका पैसा ही विदेशों के बैंक में है ..तो वो लोंग कैसे मान जायेंगे आसानी से ...
    इस समय यदि बाबा ने स्वयं ही अनशन तोड़ दिया तो सरकार को और मीडिया को अच्छा अवसर मिल जायेगा बाबा के खिलाफ कुछ भी कहने का ...
    यहाँ तक कि वो लोंग कहने भी लगे हैं जो खुद जानवरों का चारा डकार गए हैं - कि यह बीमारी अनशन के चलते नहीं है ..उनके आर्थिक दस्तावेजों के खुलासे की वजह से है .

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  3. बस पत्थर ही नुकीले करने पड़ेगें।

    सही कहा आपने।

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  4. विचारोत्तेजक आलेख के लिए बधाईयाँ .....

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  5. अब तो तोड़ दिया है बाबा ने अनशन!

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  6. baba bhale hi brhstaachaar ke khilaaf lad rahe hain per apni ladai per khud hi nahi dat paa rahe hain ramleela maidaan se khud hi dar kar bhaage.anshan bhi poori tarah kaamyaab nahi raha aespataal bharti honaa padaa.saarthak laur vicharuttojak lekh.badhaai,


    please visit my blog.thanks.

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