Friday, September 10, 2010

देश की आवाज़ बन गए डॉ. रमन सिंह !

क्या आपको छत्तीसगढ़ के अमर शहीद वीर नारायण सिंह के महान संघर्ष और बलिदान की अमर कहानी याद है ? अगर नहीं, तो जरा इतिहास के पन्नों को पलटकर पढ़ लीजिए। आपको यह मालूम हो जाएगा कि कैसे डेढ़ सौ साल पहले 1856 में छत्तीसगढ़ में भयंकर अकाल के समय सोनाखान के प्रजा हितैषी जमींदार नारायण सिंह ने जमाखोर व्यापारियों के जन-विरोधी रवैये से तंग आकर अकाल पीड़ित किसानों और मजदूरों को संगठित किया और उधारी में भी अनाज देने से इंकार करने वाले कसडोल के एक महाजन की कोठी से धान का जखीरा जब्त कर उसे जरूरतमंद जनता में बांट दिया।
तत्कालीन अंग्रेज हुकूमत ने इसे अपनी सरकार के खिलाफ नारायण सिंह का विद्रोह मानकर, एक व्यापारी की शिकायत के आधार पर उन्हें 24 अक्टूबर 1856 को सम्बलपुर (वर्तमान उड़ीसा) में गिरफ्तार कर लिया। नारायण सिंह रायपुर जेल में बंदी के रूप में लाए गए। वर्ष 1857 में अंग्रेजों के विरूध्द पूरे देश में आजादी की लड़ाई का शंखनाद हो चुका था। वीर नारायण सिंह के मन में भी आजादी के आंदोलन की ज्योति प्रज्जवलित हुई। वे अगस्त 1857 में जेल से किसी तरह निकल गए और उन्होंने सोनाखान पहुंचकर अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ अपनी जनता को संगठित कर संघर्ष की शुरूआत कर दी। अंग्रेजी सेना ने उन्हें फिर गिरफ्तार किया और अंग्रेजों की अदालत ने उनको मृत्यु दण्ड सुनाया। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में 10 दिसम्बर 1857 को वीर नारायण सिंह देश के लिए और देश की जनता की आजादी के लिए शहीद हो गए। अकाल पीड़ित भूखी जनता को 'अनाज का अधिकार' दिलाने के वीर नारायण सिंह के संघर्ष ने उन्हें इस अंचल में आजादी के प्रथम क्रांतिकारी आंदोलन का जन-नायक बना दिया। जनता की भूख की ज्वाला से ही छत्तीसगढ़ में आगे चलकर भारत माता की आजादी के लिए जन-संघर्ष की शुरूआत हुई।
      देश अब आजाद है, फिलहाल 1856 के अकाल जैसी परिस्थितियां नहीं है, फिर भी महंगाई डायन का प्रकोप तो है ही। ऐसे में देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में गरीबों को कम से कम दो वक्त के लिए भरपेट भोजन की गारंटी देना और इसके लिए उन्हें किफायती दर पर अनाज दिलाना जनता के द्वारा निर्वाचित हर सरकार का 'राज-धर्म' होना चाहिए। छत्तीसगढ़ में इस 'राज-धर्म' का बखूबी पालन किया जा रहा है। इतना ही नहीं बल्कि देश की जनता को 'अनाज अथवा भोजन का अधिकार' दिलाने के लिए भी छत्तीसगढ़ की पहल लगातार जारी है। जब भारत के इस नए राज्य में छत्तीस  लाख से ज्यादा गरीब परिवारों को महंगाई के इस नाजुक दौर में भी प्रादेशिक सरकार सिर्फ एक रूपए और दो रूपए किलो में हर माह प्रति परिवार पैंतीस किलो के हिसाब से चावल और दो किलो नि:शुल्क आयोडिन नमक दे सकती है, तो फिर भारत सरकार पूरे देश में गरीबों के लिए ऐसा इंतजाम क्यों नहीं कर सकती ? अपने इस चिंतन के साथ 'गरीबों के डॉक्टर' के नाम से लोकप्रिय  डॉ. रमन सिंह ने  छत्तीसगढ़  की नब्ज पहचान कर इस नए राज्य की सामाजिक-आर्थिक बीमारियों के निदान और निवारण में सफलता हासिल करने के बाद अब देश की दुखती नब्ज पर भी अपना अनुभवी हाथ रख दिया है। ऐसे में यह अब पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि भारत के करोड़ों गरीबों की सबसे बड़ी बीमारी याने कि 'भूख' का इलाज हो कर रहेगा। आज सभी देख रहे हैं कि डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ विकास के अनेक क्षेत्रों में पूरे देश में अपनी बढ़त बनाए हुए है। पिछले महीने भारत सरकार के केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन की रिपोर्ट आयी, जिसमें छत्तीसगढ़ को पिछले वित्तीय वर्ष 2009-10 में सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) में 11.49 प्रतिशत की वृध्दि दर के साथ पूरे देश में पहला स्थान दिया गया। डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ देश का पहला बिजली कटौती मुक्त राज्य भी बन गया है। किसानों को खेती के लिए सहकारी समितियों से सिर्फ तीन प्रतिशत के किफायती वार्षिक ब्याज पर ऋण सुविधा देने के मामले में भी यह देश का पहला राज्य होने का गौरव प्राप्त कर चुका है। गरीबों के लिए संचालित राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना में देश के इस नये राज्य ने गरीबों को नि:शुल्क इलाज के लिए दस लाख 70 हजार स्मार्ट कार्ड बांटकर पूरे भारत में पहला स्थान हासिल किया है। गरीबों को एक रूपए और दो रूपए किलो अनाज और नि:शुल्क नमक वितरण के जरिए भी छत्तीसगढ़ ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है।
      इसी कड़ी में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह द्वारा आठ सितम्बर को नयी दिल्ली के योजना भवन में आयोजित बैठक में रखी गयी मांगों को अगर स्वीकार कर लिया गया, तो देश की सार्वजनिक वितरण व्यवस्था में और गरीबों के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है। इस बैठक में भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली से निजीकरण की व्यवस्था को खत्म करने और देश के सभी गरीब मेहनतकशों के लिए एक रूपए और दो रूपए किलो के बेहद किफायती मूल्य पर हर महीने 35 किलो के हिसाब से अनाज वितरण की व्यवस्था करने का सुझाव देकर डॉ. रमन सिंह देश के आकाश में नयी उम्मीदों के चमकीले सितारे की तरह छा गए हैं। वे छत्तीसगढ़ की दो करोड से अधिक जनता की आवाज़ तो हैं ही ,  महंगाई से जूझ रहे देश में जनता को राहत पहुंचाने के लिए एकदम सही वक्त पर यह मांग रख कर  अब तो  समूचे देश  की  आवाज बन गए हैं.उनकी यह आवाज़ दिल्ली में गंभीरता से सुनी जा रही है कि सस्ता अनाज सचमुच आज देश की पहली ज़रुरत है . उनके नेतृत्व में छत्तीसगढ़  अपनी विभिन्न जन-कल्याणकारी योजनाओं के साथ  तेजी से विकसित होते राज्य की छवि लेकर एक बार फिर देश के जन-मानस में छा गया है। गौरतलब है कि डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दस हजार से ज्यादा राशन दुकानों के जरिए छत्तीस लाख से अधिक गरीब परिवारों को बेहद कम कीमतों पर हर माह पैंतीस किलो चावल  दे रही है. अगर कोई परिवार चाहे तो इसमें से पांच किलो अनाज गेहूं के रूप में भी ले सकता है। इनमे से गरीबी-रेखा श्रेणी  के 29 लाख से कुछ अधिक परिवारों को सिर्फ दो रूपए किलो में और अन्त्योदय श्रेणी अर्थात गरीबों में भी सबसे गरीब सात लाख परिवारों को केवल एक रूपए किलो में यह अनाज मिल रहा है. सम्पूर्ण पारदर्शिता के साथ यह प्रणाली छत्तीसगढ़  में बेहतर ढंग से चल रही है. गरीबी रेखा से ऊपर के लगभग बीस लाख परिवारों के लिए भी राज्य सरकार ने सस्ते अनाज की व्यवस्था की है. उन्हें तेरह रूपए किलो में चावल और दस रूपए किलो में गेंहूं दिया जा रहा है। राजधानी रायपुर के 09 सितम्बर के अखबारों में छपे स्थानीय बाजार भाव के अनुसार खुले बाजार में चावल एच. एम. टी बीस रूपए से बत्तीस  रूपए, चावल सरना सोलह रूपए से अठारह रूपए और चावल नगरी दुबराज इकत्तीस  रूपए से छत्तीस  रूपए प्रति किलो की दर से बिक रहा है.खुले बाजार में गेंहूं चौदह रूपए से इक्कीस रूपए किलो में बिक रहा है। ऐसे में अगर छत्तीसगढ़  सरकार अपने राज्य की गरीब जनता को सिर्फ एक रूपए और दो रूपए किलो में हर महीने पैंतीस किलो किफायती चावल दे रही है, निम्न -मध्यम श्रेणी के परिवारों को भी प्रचलित बाजार भाव से काफी कम कीमत पर अनाज उपलब्ध करा रही है, खुले बाजार में दस-पन्द्रह रूपए किलो के पैकेट में बिक रहा आयोडिन नमक राज्य सरकार गरीबों को मुफ्त दे रही है, तो इस प्रकार की लोक-हितैषी व्यवस्था पूरे देश में क्यों नहीं हो सकती ? यह डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में छत्तीसगढ़  में लोकप्रियता के शिखर पर पहुँच चुकी मुख्यमंत्री खाद्यान्न सहायता योजना का ही नतीजा है कि भारत-सरकार के योजना आयोग ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के छत्तीसगढ़  मॉडल को पूरे देश में लागू करने का मन बनाया है. इस बीच केंद्र सरकार द्वारा गरीबों के लिए भोजन के अधिकार की गारंटी देने वाला कानून भी लागू करने का प्रस्ताव है, जबकि डॉ. रमन सिंह की सरकार ने तो  कानून नहीं, बल्कि योजना के रूप में अपने राज्य के गरीबों को पहले से ही इस अधिकार की गारंटी दे रखी है।

      योजना आयोग ने एक उच्च स्तरीय कार्य समूह बनाया है, जो केंद्र को गरीबों के लिए भोजन के अधिकार के प्रस्तावित कानून और प्रचलित सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार के बारे में अपने सुझाव देगा। आयोग ने कार्य समूह में  डॉ. रमन सिंह को खास तौर पर सदस्य के रूप में शामिल किया है ताकि छत्तीसगढ़  की कामयाबी के उनके  अनुभवों का फायदा लेकर इस दिशा में सार्थक कदम उठाए जा सकें। इस कार्य समूह की दिल्ली बैठक में आठ सितम्बर को डॉ. रमन सिंह द्वारा दिए गए सुझावों को अगर केन्द्र स्वीकार कर ले, तो निश्चित रूप से देश की सार्वजनिक वितरण व्यवस्था 'सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय' की भावना के अनुरूप संचालित होने लगेगी। कार्य समूह की बैठक में डॉ. रमन सिंह का कहना था कि भोजन के अधिकार के प्रस्तावित कानून में केंद्र सरकार गरीबों के लिए प्रति परिवार मासिक पच्चीस किलो अनाज देना चाहती है, जबकि हम तो इससे दस किलो ज्यादा याने कि पैंतीस किलो अनाज छत्तीसगढ़  में पहले से ही दे रहे हैं. ऐसा इंतजाम पूरे देश में होना चाहिए। योजना आयोग के इस महत्वपूर्ण कार्य समूह में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को शामिल किया जाना इस बात का एक अच्छा संकेत है कि केन्द्र ने छत्तीसगढ़ की सार्वजनिक वितरण प्रणाली की खूबियों को बखूबी पहचान लिया है. डॉ. रमन सिंह ने इस अहम बैठक में यह भी सुझाव दिया कि देश भर में उचित मूल्य दुकानें पूर्ण रूप में सार्वजनिक संस्थाओं को सौंप दी जाए, जैसा कि छत्तीसगढ़ में उनकी सरकार ने किया है। इससे जनता को यह सुखद एहसास होता है कि ये उसकी स्वयं की दुकान है। आज इस राज्य में दस हजार 465 उचित मूल्य की दुकानें सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा चलायी जा रही हैं। इनमें से चार हजार 185 दुकानें ग्राम पंचायतों द्वारा, तीन हजार 783 दुकानें सहकारी समितियों द्वारा, दो हजार 299 दुकानें महिला स्व-सहायता समूहों द्वारा और शेष दुकानें वन समितियों और अन्य सार्वजनिक संस्थाओं द्वारा संचालित की जा रही हैं। मुख्यमंत्री ने कार्यसमूह की बैठक में कहा कि प्रत्येक राशन कार्ड धारक को स्मार्ट कार्ड दिया जाना चाहिए, जो देश के सभी नागरिकों के लिए प्रस्तावित विशिष्ट राष्ट्रीय पहचान पत्र (यू.आई.डी.) के मानकों के अनुरूप हों। उन्होंने देश के अनुसूचित (उपयोजना) क्षेत्रों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत दाल वितरण की भी सलाह दी और कहा कि ऐसे क्षेत्रों में गरीबी रेखा श्रेणी के परिवारों को पौष्टिकता के लिए हर महीने दो किलो दाल भी दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके लिए केन्द्र सरकार कम से कम प्रतिकिलो 25 रूपए की सब्सिडी भी दे। डॉ. रमन सिंह ने केन्द्र सरकार से कहा कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली से संबंधित जन-शिकायतों के निराकरण के लिए और प्रणाली में पारदर्शिता के लिए छत्तीसगढ़ की तरह नि:शुल्क (टोल-फ्री) कॉल सेन्टर अथवा हेल्प लाईन की व्यवस्था की जानी चाहिए, साथ ही ऐसी शिकायतों के निराकरण की ताजा स्थिति वेबसाईट में प्रदर्शित की जानी चाहिए। इसके अलावा सभी राशन कार्ड धारक हितग्रहियों की सूची सार्वजनिक जगहों में प्रदर्शित कर ग्राम सभाओं में भी जनता के बीच उसे पढ़कर सुनाया जाना चाहिए। डॉ. रमन सिंह द्वारा देश भर में उचित मूल्य दुकानों (राशन दुकानों) के सामाजिक अंकेक्षण अर्थात प्रत्येक दुकान का पूरा हिसाब आम जनता के बीच रखे जाने की व्यवस्था करने का जो सुझाव दिया है, वह भी पारदर्शिता की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। बैठक में उन्होंने कहा कि देश में वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित सभी जिलों में सरकारी कर्मचारियों और आयकर दाताओं को छोड़कर शेष सभी परिवारों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गरीबी रेखा श्रेणी में शामिल मान लिया जाना चाहिए। छत्तीसगढ़ में इस प्रणाली के तहत राज्य नागरिक आपूर्ति निगम की जिन गाड़ियों में राशन सामग्री उचित मूल्य दुकानों के दरवाजें तक पहुंचायी जाती है, उन वाहनों को पीले रंग से रंगकर उन्हें विशेष पहचान दी गयी है, उचित मूल्य दुकानों के काम-काज से संबंधित जनशिकायतों के निराकरण के लिए नि:शुल्क कॉल सेन्टर खोला गया है और वेबसाईट पर राज्य के सभी 56 लाख राशन कार्ड धारकों और दस हजार से ज्यादा उचित मूल्य दुकानों की सूची भी प्रदर्शित कर दी गयी है।


        रमन सरकार के इस प्रकार के बेहतर प्रबंधन के फलस्वरूप सार्वजनिक वितरण प्रणाली में अत्याधिक कसावट आयी है। प्रदेश सरकार के कठोर कदमों से राशन की कालाबाजारी और जमाखोरी पर भी अंकुश लगा है। डॉ. रमन सिंह ने सम्पूर्ण भारत के परिप्रेक्ष्य में दिल्ली बैठक में यह भी सुझाव दिया कि देश भर में आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 की धारा 10 (क) के अन्तर्गत ऐसे प्रकरणों को केन्द्र सरकार ने वर्ष 1981 में पन्द्रह साल के लिए संज्ञेय और गैर जमानती बनाया था, लेकिन यह अवधि पन्द्रह वर्ष पहले ही अर्थात वर्ष 1996 में समाप्त हो गयी है और अब ऐसे अपराध जमानत योग्य हो गए हैं। इस पर गंभीरता से ध्यान देने और काला बाजारी और जमाखोरी तथा मूल्यों में असामान्य वृध्दि रोकने के लिए ऐसे प्रकरणों को गैर जमानती अपराधों की श्रेणी में रखा जाना जरूरी हो गया है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि आवश्यक वस्तुओं के अवैध परिवहन में लिप्त पाए जाने वाले वाहनों को सरकार की ओर से राजसात कर लेने का प्रावधान भी इस अधिनियम में शामिल किया जाना चाहिए।


देश के हर नागरिक को दिन में दो वक्त का भरपेट भोजन मिले, ताकि वह मन लगाकर अपने घर-परिवार का भरण-पोषण करते हुए देश के विकास में अपना योगदान दे सके, इस दृष्टि से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए इन सुझावों को जल्द से जल्द स्वीकार कर लेना राष्ट्रहित में बहुत जरूरी हो गया है। वैसे डॉ. रमन सिंह प्रारंभ से ही केन्द्र सरकार के विभिन्न मंचों पर इस विषय में अपनी भावनाएं व्यक्त करते रहे हैं। उन्होंने सिर्फ सात महीने पहले विगत छह फरवरी को नई दिल्ली में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए आयोजित मुख्यमंत्रियों की बैठक में भी उन्हें यह सुझाव दिया था कि भारत सरकार के प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा (भोजन के अधिकार) की गारंटी से संबंधित कानून में देश के सभी गरीब (बी.पी.एल.) परिवारों के लिए हर महीने कम से कम 35 किलो अनाज की पात्रता तय की जानी चाहिए। ऐसे समय में जब केन्द्र सरकार के ही विशेषज्ञों की विभिन्न समितियों द्वारा अपने प्रतिवेदनों में देश भर में गरीबी रेखा श्रेणी में जी रहे लोगों की संख्या की चिन्ताजनक तस्वीरें पेश की गयी हों, तब तो यह और भी अधिक जरूरी हो जाता है। मिसाल के तौर पर केन्द्रीय पंचायत और ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा डॉ. एन.सी.सक्सेना के अध्यक्षता में ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा श्रेणी (बी.पी.एल.) के परिवारों की पहचान के लिए सही प्रक्रिया तय करने के लिए समिति गठित की गयी थी। इसी समिति की वर्ष 2009 में आयी रिपोर्ट में देश में ऐसे परिवारों की संख्या 50 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ में लगभग 73.16 प्रतिशत बतायी गयी। वर्ष 2008-09 में ही केन्द्र ने अर्जुन सेनगुप्ता कमेटी का गठन किया। इस कमेटी की रिपोर्ट में बताया गया कि देश में लगभग 77 प्रतिशत लोग प्रतिदिन 20 रूपए से भी कम राशि में अपना गुजारा करते हैं। ऐसे नाजुक दौर में छत्तीसगढ़ सरकार ने अपने राज्य में छत्तीस लाख से ज्यादा गरीब परिवारों को सिर्फ एक और दो रूपए किलो में चावल और नि:शुल्क दो किलो आयोडिनयुक्त नमक देने का पक्का इंतजाम किया है, जो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की सरकार की सामाजिक-प्रतिबध्दता का एक शानदार उदाहरण बनकर पूरे देश को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। इस योजना में राज्य सरकार सालाना बारह सौ करोड़ रूपए के आस-पास खर्च कर रही है, और वह भी अपने वार्षिक बजट से। राज्य में इस योजना के अनेक सकारात्मक और उत्साहजनक नतीजे मिल रहे हैं। रोजगार की तलाश में ग्रामीणों के छत्तीसगढ़ से बाहर जाने का सिलसिला थम गया है, क्योंकि अब लोगों की दैनिक मजदूरी भी काफी बढ़ गयी है। राज्य निर्माण के विगत लगभग दस वर्ष में पहली बार इस वर्ष प्रदेश सरकार के श्रम विभाग ने एक अधिसूचना जारी कर मजदूरों के न्यूनतम मूलवेतन में तिगुनी वृध्दि की है, अब छत्तीसगढ़ में अकुशल श्रमिकों के लिए दैनिक न्यूनतम वेतन 145 रूपए, अर्ध्दकुशल श्रमिकों के लिए 152 रूपए और कुशल श्रमिकों के लिए 162 रूपए हो गया है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के निर्माण कार्यों में भी श्रमिकों को एक सौ रूपए प्रतिदिन के हिसाब से मजदूरी मिल रही है। ऐसे में राज्य के शहरों और गांवों में गरीब परिवारों को हर महीने एक रूपए और दो रूपए किलो में 35 किलो प्रति परिवार किफायती अनाज मिल रहा है, तो वे एक दिन की मजदूरी से भी कम राशि में अपने परिवारों के लिए महीने भर के अनाज का पक्का बंदोबस्त आसानी से कर पा रहे हैं। भूखे पेट रहने की मजबूरी अब छत्तीसगढ़ में किसी को भी नहीं है। यह अब इतिहास की बात हो चुकी है। हर गरीब के घर में अनाज का पक्का इंतजाम है। अगर मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की सलाह पर पूरे देश में गरीबों के लिए सस्ते अनाज की ऐसी जनकल्याणकारी व्यवस्था लागू हो जाए, तो फिर इस देश का यारों क्या कहना !
                                                                                                                          स्वराज्य कुमार                                                                                                                                                                                                                      

5 comments:

  1. विकास की गंगा बह रही है।
    जीडीपी दर 11.49 प्रतिशत मायने रखती है।
    सब डॉक्टर रमन सिंह का कमाल है।
    आभार

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  2. बहुत अच्छी पोस्ट ....आभार

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  3. वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:।

    निर्विध्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥

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  4. ullekhniya uplabdhiyan,vikas ki or teji se agrasar, saath hi bahut kuchh kiya jana shesh. vikas se aur adhik vikas ko badhava mile, isi kaamna k sath - balmukund

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